ऋषि ऋण, देव ऋण, पितृ ऋण से बड़ा बैंक ऋण?
प्रत्येक मनुष्य चाहे वो किसी भी जाति, सम्प्रदाय या क्षेत्र का हो पर तीन ऋण
प्राकृतिक रूप से माने जाते हैं- ऋषि ऋण, देव ऋण और पितृ ऋण।
किसे कहते हैं ऋषि ऋण?
ज्ञान दुनिया का सार है। ज्ञान बिना मनुष्य पशु समान है। सच्चे
ज्ञान के आधार पर ही मनुष्य, परिवार, समाज और प्रकृति के बीच समन्वय किया जा सकता
है। जो सच्चा ज्ञान मनुष्यों को उनके गुरू, भगवान, तीर्थकर, पीर, पैगम्बर, ऋषि-मुनियों के
माध्यम से प्राप्त हुआ है, जिसके आधार पर
दुनिया में शान्ति बनी रहती है और मनुष्यों का जीवन श्रेष्ठ बन जाता है, यह प्रत्येक मनुष्य पर एक ऋण माना गया है। यह
ऋण उस ज्ञान का प्रचार-प्रसार करके अगली पीढ़ी तक पहुँचाकर चुकाना होता है।
क्या है देव ऋण?
हमारे यहाँ देव उन्हें माना गया है जो सिर्फ देते हैं और
बदले में कुछ वापस लेने की अपेक्षा नहीं करते जैसे पेड़, पौधे, सूर्य, चन्द्रमा, नदियाँ, झरने, सागर, पशु-पक्षी आदि जिनके बिना हमारा जीवन असम्भव है और हम पूरी तरह से इन पर
आश्रित है। ये सब बदले में हमसे कुछ नहीं माँगते, इसलिए हम इनके ऋणी हैं। इस ऋण को चुकाने के लिए प्रत्येक
मनुष्य को इस समस्त प्रकृति की न सिर्फ रक्षा करनी होती है बल्कि इन्हें और अधिक
समृद्ध बनाने का प्रयत्न करना होता है।
मात्र संतान उत्पत्ति से नहीं चुकता पितृ ऋण
प्रत्येक मनुष्य पर उनके पूर्वजों का ऋण होता है क्योंकि
किसी का भी जीवन अपने पूर्वजों के बिना संभव नहीं होता। उनसे न सिर्फ जीवन मिला
बल्कि उन्होंने हमें शारीरिक, मानसिक और
आध्यात्मिक रूप से पोषित किया और सशक्त बनाया और जीने के लिए एक ऐसी व्यवस्था का
निमार्ण किया जिससे हम बढ़िया और सहज तरीके से अपना जीवन व्यतीत करें। इस ऋण को
चुकाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को न सिर्फ पुत्र अथवा पुत्री पैदा कर अपना वंश आगे
बढ़ाना होता है बल्कि अपनी संतान को हर तरीके से सक्षम बनाना होता है और उनकी
आजीविका की व्यवस्था भी करनी होती है।
गैर कानूनी और काल्पनिक है बैंक ऋण
बैंक ऋण एक काल्पनिक ऋण है जो धोखे से कुछ लोगों द्वारा
पूरी दुनिया को नियंत्रित करने के लिए एक षड्यंत्रकारी तरीके से लोगों पर थोप दिया
गया है। यह काल्पनिक इसलिए है क्योंकि जब कोई बैंक से कर्ज लेने जाता है तो बैंक
हवा में पैसे बनाकर आपके खाते में लिख देते हैं। वो पैसा न तो किसी का जमा कराया
गया पैसा होता है और न ही बैंकों का अपना होता है। आप सिर्फ भ्रम में फँसकर ये मान
लेते हैं कि बैंकों ने आपको कुछ दिया है और यदि आप उस काल्पनिक ऋण को देने से मना
कर देते हैं तो कानूनी दाव-पेचों से आपको डरा दिया जाता है।
कहाँ चूक गये हम?
जबसे समाज ने ऋषि, देव, और पितृ ऋण से बैंक ऋण
चुकाना ज्यादा महत्त्वपूर्ण व नैतिक मान लिया, उसी दिन से दुनिया का पतन शुरू हो गया। जैसे ही हमने सच्चे
ज्ञान को आगे बढ़ाना बंद कर दिया तबसे हम मुर्ख होते चले गये। अज्ञानी लोगों ने देव
ऋण चुकाना अंधविश्वास घोषित कर दिया और हम विकास और विज्ञान का नाम ले-लेकर पूरी
प्रकृति का नाश करते चले गये। विकास के नाम पर प्रकृति का नाश करते ही हम पितृ ऋण
चुकाने में भी असमर्थ हो गये हैं और मजबूरी में अपने बच्चों को जहरीला भोजन,
जहरीला पानी, जहरीली हवा देकर उनको शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बना
रहे हैं। और तो और अपनी संतान को एक सुरक्षित आजीविका देने का जो माता-पिता का
कार्य था अब उसे भी सबने अपने बच्चों पर लाद दिया। इसकी पूर्ति के लिए उन नन्हें
बच्चों को झूठी शिक्षा के माध्यम से न सिर्फ मानसिक और आध्यात्मिक रूप से अपंग बना
रहे हैं बल्कि कोल्हू के बैल की तरह जोतकर उनका बचपन और जीवन बर्बाद कर रहे हैं।
ऊपर से गर्व से कहते हैं कि हम अच्छे माँ-बाप हैं। शर्म करो।
इस्लाम और ब्याज
पारह न. 3, सूरत अल-बक़रह,
आयत 275- कुरान शरीफ़
‘‘अल्लाह ने हलाल किया खरीदो-फ़रोख्त को और हराम किया सूद
(ब्याज) को!’’
भारतीय ग्रामीण व्यवस्था में कर्ज देकर ब्याज मांगना
प्रतिबंधित था क्योंकि हमारे पूर्वज जानते थे कि ब्याज की व्यवस्था लागू होते ही
कुछ ही वर्षों में पूरी दुनिया तबाही की ओर चली जायेगी। यही बात कुरान शरीफ़ में
बतायी गयी है कि इस्लाम में ब्याज का लेन-देन हराम है। दुनिया में जितना अन्याय, अत्याचार, अपराध, शोषण, गरीबी, हिंसा, युद्ध इत्यादि है, उनके मूल में ब्याज की व्यवस्था है। अगर पूरी दुनिया इस्लाम
की इस अच्छी सीख को अपना लें तो पूरी दुनिया में शांति और अमन कायम हो जाए। ब्याज
से दुनिया को नियंत्रित करने वाले लोगों ने मुसलमानों की एक गलत छवि प्रस्तुत की
है ताकि सच्चाई का दमन हो सके और उनकी ब्याज की व्यवस्था चलती रहे।
कैसे चुकायें सभी ऋण
अब हमें खुद तय करना है कि हमारे लिए धोखे से पैदा किये गये
बैंक ऋण की किस्तें चुकाना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है या उन असली ऋणों को। हम भारतीय
परिवार के माध्यम से देश में सभी जाति, क्षेत्र और सम्प्रदाय के लोगों को जोड़कर शुरूआत ऋषि ऋण की अदायगी से करना
चाहते हैं जिससे सभी अपने देवों और पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ रहें और अपने धर्म को
समझकर प्रकृति और समाज को मजबूत करें और जिससे एक खुशहाल भारत की नींव रखी जा सके।
क्या आप अपना ऋषि ऋण (गुरू, भगवान, तीर्थंकर, पीर, पैगम्बर, ऋषि-मुनियों के माध्यम से प्राप्त हुआ ज्ञान)
चुकाना चाहते हैं? हाँ, तो हमारे इस प्रयास को अपना प्रयास समझते हुए
आगे बढ़ायें और भारतीय परिवार के एक मजबूत सदस्य बनें।
भारतीय परिवार के सदस्य बनने हेतु हमसे सम्पर्क करें। हमारा
मोबाईल सं0 7631518758, 8745026277 है। आप हमें मेल
भी कर सकते हैं।
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